आख़िर दूध फटा है या फिर जमा है?
दूध में कैसीन और वसा मुख्य रूप से पाया जाता है। कैसीन, दूध में उपस्थित प्रोटीन को कहते है। हालांकि कैसीन और वसा दोनों ही पानी में घुलनशील नहीं होते। इसके अलावा यही दो मुख्य तत्व दूध के जमने और फटने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
आख़िर दूध फटा है या फिर जमा है? |
दूध का फटना…
दूध में कैसीन कोलायडी अवस्था में यानी निलम्बित रहता है क्योंकि कैसीन के माइसेल बन जाते हैं और प्रत्येक माइसेल की सतह पर ऋणात्मक आवेश होता है।
यदि यह आवेश ख़त्म कर दें तो ये कैसीन-माइसेल आपस में जुड़कर बड़े-बड़े कण बना लेते हैं जो अब निलम्बित नहीं रह सकते। इसी को दूध का फटना कहते हैं। कैसीन अघुलित अवस्था में पहुंच जाता है। ऋणात्मक आवेश को ख़त्म करने का सबसे सरल तरीका है दूध में नींबू निचोड़ देना।
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इससे दूध की अम्लीयता बदल जाती है और कैसीन के लिए संकट पैदा हो जाता है। दूध के फटने में भी यही होता हैं। दूध में कुछ जीवाणु उपस्थित होते हैं या हवा से भी पहुंच जाते हैं। ये जीवाणु दूध में मौजूद लैक्टोज़ से क्रिया करते हैं और उसे लैक्टिक अम्ल में बदल देते हैं। इसी के कारण दूध खट्टा हो जाता है।
दही जमना…
दही जमाने के लिए हल्के गुनगुने दूध में थोड़ा-सा दही मिलाकर रख दिया जाता हैं। वास्तव में, दही जमने के लिए भी जीवाणु ही ज़िम्मेदार हैं। किन्तु ये जीवाणु दूध फाड़ने वाले जीवाणु से अलग होते हैं। दूध में मिलने पर ये जीवाणु वृद्धि करने लगते हैं।
इसमें भी ठोस पदार्थ जम जाते हैं परन्तु यह क्रिया ज़्यादा समरूप होती है और पानी अलग नहीं होता। दही की खटास लैक्टिक अम्ल के कारण ही होती है। चाहे दूध का फटना हो या दही का जमना, दोनों में मुख्य किरदार कैसीन होता है। कैसीन अमीनो अम्लों की ही एक लड़ी होती है।
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यह तो हुई इसकी रासायनिक रचना। लेकिन प्रोटीन का बड़ा अणु विशिष्ट तरीके से तह किया होता है। इसे हम उसकी भौतिक रचना कह सकते हैं। फिर दूध हमने देखा कि कैसीन के कई अणु मिलकर एक समूह यानी माइसेल बना लेते हैं जो उसे निलम्बित अवस्था में रखता है। यह कैसीन की रचना का तीसरा स्तर है।
अम्लीयता बदलने से यह तीसरी जमावट टूटने लगती है और कैसीन के अणु बड़े-बड़े समूह बनाने को स्वतंत्र हो जाते हैं। यही ताना-बाना दही की समरूपता के लिए ज़िम्मेदार होता है।
दूध फटने में यही क्रिया इतनी तेज़ी से होती है कि कैसीन के अणुओं को चारों ओर के अणुओं से जुड़ने की फुरसत ही नहीं मिलती और वे छोटे-छोटे थक्कों के रूप में नज़र आते हैं। दही में कैसीन के अणु एक सघन ताना-बाना बना लेते हैं और हमें एक अर्ध-ठोस दही मिल जाता है।
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